दो बाल्टी पानी Sarvesh Saxena द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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दो बाल्टी पानी



"अरे नंदू… उठ के जरा देख घड़ी में कितना टाइम हो गया है " मिश्राइन ने चिल्ला कर कहा|
"अरे मम्मी सोने भी नहीं देती सोने दो ना" नंदू अपनी दोनों बाहें और मुंह फैलाते हुए बोला l

"हे भगवान, आजकल के बच्चे रात भर मोबाइल को लुगाई की तरह चिपकाए रहेंगे और सुबह घोड़े जैसे सो जाएंगे, इन मुए बिजली वालों को भी मौत नहीं आती, ना आंधी आया ना पानी कल से बिजली काट कर रखी है", मिश्राइन पैर पटकते हुए गुसलखाने में घुस गईं कि तभी दरवाजे पर किसी ने आवाज लगाई तो मिश्राइन झुंझला कर बोलीं, " अब दरवाजा भी मैं ही खोलूं, न जाने बाप ने कहा ब्याह दिया मुझे l
मिश्राइन ने बड़बड़ाते हुए दरवाज़ा खोला तो देखा सामने लाली लिपस्टिक लगा के ठकुराइन खड़ी थी,
मिश्राइन मुहँ सिकोड़ते हुए बोली, "ठकुराइन का बात है?"
ठकुराइन," अरे जीजी.. तुम्हारे यहां पानी आया का, घर में कतई सूखा पड़ा है, ये मुए बिजली वाले बिजली दे, तो पानी आए, जरा दो बाल्टी पानी दे दो जीजी", ठकुराइन ने बड़े प्यार से कहा l

मिश्राइन ने भौंहें टेढ़ी करते हुए कहा l, "आय हाय… हमारे यहां तो कुआं खुदा है आओ भर लो, बड़ी आई दो बाल्टी पानी दे दो" |

ठकुराइन ने मुंह बिचकाया और साड़ी का पल्लू ठीक करते हुए बोली," ओहो क्या बात है? रात को क्या सूखी मिर्ची फांक ली थी जो सुबह सुबह आग उगल रही हो, जीजी |

मिश्राइन ने घर के बाहर चबूतरे के पास लगे नल को गुस्से में खोला तो देखा पानी धीरे-धीरे आ रहा था, मिश्राइन ने बाल्टी लगा दी और मुह घुमा के खड़ी हो गई तभी उधर से वर्माइन हाथ में बड़ी बाल्टी लेकर आती दिखी तो दोनों औरतें बोली, लो इनकी कमी थी l

"मिश्राइन जीजी कैसी हो, जरा पानी हमारे लिए भी बचा लेना" वर्माइन मुस्कराते हुए बोलीl
"हां काहे नहीं.. ये नल तो तुम्हारे ससुर ने हीं लगाया था" l मिश्राइन खीझती हुई बोली l कुछ देर खींचातानी करने के बाद तीनो औरतें असली औरतों वाले रूप मे आ गईं और खुसुर-पुसुर करके पानी भरने लगी l

मिश्राइन की एक बाल्टी भर गई तो बड़ी धौंस में अपनी दूसरी बाल्टी लगाई और बोली," ठकुराइन सुना है तुम्हारे पड़ोस वाली गुप्ताइन आजकल बड़ी चमकी चमकी रहती है, कुछ लक्षण ठीक ना लग रहे है" |
ठकुराइन अपनी आवाज को जरा धीमा करके बोली, "हां जीजी, लागत तो कुछ ऐसा ही है" l

बाल्टी भरकर बहने लगी लेकिन किसी का ध्यान बहते पानी पे नहीं गया |

ठकुराइन, "जीजी तुम्हारी कसम राम झूठ ना बुलाए, रोज बाजार जाती है, सज़ संवर के, राम जाने बाजार जाती है या किसी से मिलने… हा हा हा हा हा…" |
तीनों औरतें हंसने लगी तभी वर्माइन बोली," अरे वह सब छोड़ो सरला का लड़का है ना, आजकल मोड वाले बनिया जी के घर के चक्कर मारे है, जब वो बाहर तो खिड़की खुली, जब वो गायब तो खिड़की बंद " |

वर्माइन की बात सुनकर मिश्राइन और ठकुराइन के मुहँ फैल जाते हैं |


समाप्त |

अगला भाग आगे..